कान्हंगड़ नित्यानंद आश्रम के विद्यानंद भारती स्वामी मुझे बहुत प्रिय हैं, हम कई बार मिल चुके है। वह हमारे बेविनकोप्पा आश्रम भी आते हैं। विद्यानंद भारती स्वामीजी लंबे समय से गुरुवन में सेवा कर रहे हैं, वहां वे गहन साधना करते हुए एक सादा जीवन जी रहे हैं, वे जनानंदस्वामी, गोविंदस्वामी, महाबलानंदस्वामी, आत्मानंदस्वामी, सदानंदस्वामी, मुक्तानंदस्वामी, दूसरे संतो तथा नित्यानंद भक्तों के प्रिय रहे हैं। हमने एक दूसरे के साथ अपने कई खट्टे मीठे अनुभव साझा किये हैं।
गुरुवन में लंबे समय तक रहना या वहां पहुंच पाना अपने आप में एक उत्कट साधना है। हाल ही में जब वे गुरुवन के बरगद के पेड़ के चारों ओर के मंच का जीर्णोद्धार करना चाहते थे एक नया ज्योतिषी वहां आया और तम्बुला प्रश्न (भविष्यवाणी ज्योतिष की शाखा, जो केरल में प्रचलित है) से पूछा, ‘क्या मंच का जीर्णोद्धार किया जा सकता है ? ‘। उसे उत्तर मिला ‘हां’ लेकिन पुजारी (विद्यानंद) के अलावा किसी को भी रात में गुरुवन में नहीं रहना चाहिए, केवल वही वहां रह सकते हैं और उन्हें ही वहां रुकने की अनुमति है। बहुत सारे देवियाँ, देवता, किन्नर, किमपुरुष,कात्यायिनी , यक्ष-यक्षिण, शिवगण, विष्णुगण, मलवीर, ऋषि, मुनि, गन्धर्व, और सिद्ध रात में वहाँ जाते हैं और पूजा अपने आप हो जाती है, किसी को यह देखना नहीं चाहिए और न ही इस दौरान यहां घूमना चाहिए।
बडगर पूज्य शिवानंद परमहंस के सिद्धसम्प्रदाय में दीक्षित नित्यानंद दास नाम के एक सिद्ध विद्यार्थी कुछ दिन पहले गुरुवन आए थे। नित्यानंददास केरल के सिद्धयोग साधक हैं, उनके माता-पिता ने केरल से गणेशपुरी तक की यात्रा की थी और संतानों के लिए प्रार्थना की थी, गणेशपुरी में भगवान नित्यानंद से माता-पिता द्वारा प्रार्थना के बाद उनका जन्म हुआ था इसलिए उनका नाम नित्यानंददास रखा गया। वह गुरुवन में आए और विद्यानंद स्वामी से कहा मैंने मीडिया के माध्यम से गुरुवन के बारे में बहुत कुछ सुना है कि यहां रातों के दौरान कई चमत्कार होते हैं। मैंने कई जंगलों और पहाड़ों में अपनी साधना की है, मैं कभी भयभीत नहीं हुआ और न ही वहाँ कोई बाधाएँ मुझे परेशान कर पाई । गुरुवन के बारे में कुछ फ़ेसबुक पेजों पर कुछ मनगढ़ंत कहानियां तैर रही हैं, इसलिए मैं इसे सीधे अपने दम पर जांचने के लिए यहाँ आया हूं। वे कुछ दिनों के लिए मावंगल के ‘आनंदश्रम’ में रहे फिर वे गुरुवन आए। उन्होंने नित्यानंद आश्रम ट्रस्ट से गुरुवन में रहने की अनुमति ली और गुरुवन में आ गए। उन्हें वहां कुछ भी अजीब अनुभव नहीं हुया, वह हंसने लगे। विद्यानंद भारती को तीन दिनों के लिए हुबली जाना था, नित्यानंददास को उस दौरान गुरुवन में अकेले रहना था। उसी रात, उन्होंने शंख, घंटियों और मंत्रों के जाप की तेज आवाज सुनी लेकिन जब वह देखने के लिए बाहर आए तो बाहर कोई नहीं था। उन्होने सैकड़ों लोगों की आवाजें सुनीं, उन्हें थोड़ा डर लगा, वह कमरे से बाहर भी नहीं आ पाये। घटनाओं से घबराकर, उन्होंने गुरुवन में सफाई के लिए आने वाले कर्मचारियों को सूचित किया और खुद मावंगल के आनंदश्रम में चले गए।
श्री विद्यानंद भारती स्वामीजी के गुरुवन में वापस आने के बाद ही नित्यानंददास गुरुवन में आए, उन्होंने श्री विद्यानंद भारती स्वामीजी को प्रणाम किया और कहा कि “यह उनके द्वारा गलत हुआ भगवान नित्यानंद की दिव्य लीला और उनकी शक्तियों और गुरुवन की महिमा का एहसास किए बिना, वह इसकी जांच करने आ गए , ” उन्हें पश्चाताप हुआ, अंत में उन्होंने स्वीकार किया कि “उनके( विद्यानंद स्वामी जी के) शब्द सत्य, परम सत्य हैं”, । प्रिय श्री विद्यानंद भारती ने मुझे यह वास्तविक घटना सुनाई।
मैं ऐसी ही एक घटना के बारे में बताना चाहूंगा जो अतीत में भी घटित हुई थी जब भगवान नित्यानंद शरीर में थे, इस घटना को भगवान नित्यानंद ने वकील पी के नायर को सुनाया था, चेरवत्तूर के एक इस्लामिक भक्त जिन्होंने हज यात्रा पूरी की थी वे भगवान के दर्शन के लिए कान्हंगड़ आते थे। एक बार जब गुफा निर्माण का कार्य चल रहा था, तब भगवान ने लालटेन उनके सिर के ऊपर मारा, वह बुरी तरह लहूलुहान हो गये। हाजी लंबे समय से सिरदर्द से पीड़ित थे जो कि भगवान के इस चमत्कारी उपचार के तुरंत बाद सिरदर्द ठीक हो गया, और साथ ही उनके भीतर राम नाम शुरू हो गया। उन्होंने गुफा निर्माण कार्यों में भगवान की सहायता की और उनके साथ अधिकांश स्थानों पर गए। एक बार जब भगवान, हाजी और भगवान के परम भक्त पोकलन गुरुवन में थे, तो मलवीर और वनदेवता को देखते हुए, हाजी ने कहा कि यह अंधविश्वास है और इन जैसा कुछ नहीं होता। भगवान ने कुछ भी जवाब नहीं दिया लेकिन रात्रि विश्राम करने के दौरान हाजी को अकेले गुरुवन में छोड़के भगवान और पोकलन वहां से चले गए। जैसे ही अंधेरी रात ने जंगल को घेर लिया, हाजी को लगा कि वह अदृश्य शक्तियों से पिट रहे है और उन्होंने असामान्य आवाज़ें सुनीं, इससे घबराकर वह वहाँ से भाग गये और पूरी घटना को भगवान नित्यानंद को सुनाया। भगवान ने बताया कि ‘ इस्लामिक धर्म में भी शैतान, जन्नत, जहन्नुम की अवधारणाएं होती हैं ऐसी अवधारणाएं ईसाई ,हिंदू धर्म में और बाकी धर्मों में भी हैं। सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें स्वीकार करना चाहिए।
किसी को भी गुरु में दोष नहीं ढूंढना चाहिए तथा चरणामृत में स्वाद नही देखना चाहिए।
नमो नित्यानंदाय
लेखक- स्वामी विजयानंद
Hindi Translation by
Pratyush Tomar
Mystical powers of guruvan as experienced by Swami Vidyanandji